अगर हम एक तरफ जनवरी 2011 में हुए बजट पूर्व परामर्श और ग्रीनपीस की जीवित माटी अभियान के लगातार प्रयासों के नतीजों पर नज़र डालें तो इनसे बदलाव की एक सार्थक पहल साफ दिखायी दे रही है। हालांकि अभी लम्‍बा सफर बाकी है।

इस बार बजट सत्र में वित्‍त मंत्रालय की भाषा में आया बदलाव स्‍पष्‍ट है। वित्‍त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने अपने बजट भाषण में कहा कि मिट्टी के स्वास्थ्य में गिरावट फसल अवशेषों को हटाने और रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग से आयी है इसमें विकृत उर्वरक कीमतों ने और इजाफा किया है।" अब तक हमेशा सरकारी, विशेष रूप से नीति दस्तावेजों में हमेशा "असंतुलित प्रयोग" शब्द इस्‍तेमाल होता आया है। वित्त मंत्री के भाषण में विशेष रूप से इस वाक्य में सरकारी शब्‍दावली से एक बड़ा विचलन है।

Living soilsवित्‍त मंत्री ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि "इन मुद्दों के समाधान के लिए सरकार का जैविक खेती के तरीकों को बढ़ावा देने का प्रस्ताव है, हरी खाद, जैविक कीट नियंत्रण और खरपतवार प्रबंधन जैसे पारंपरिक खेती के तरीकों के साथ आधुनिक प्रौद्योगिकी का संयोजन।

ज्ञात हो कि केन्द्र सरकार की रासायनिक खाद छूट नीति और जैविक हरित खादों की उपेक्षा से खेतों की मिटटी क्षरित या लगभग मृत हो चुकी और पैदावार घट रही है। जो भारत में खाद्य सुरक्षा और किसानों के जीवनयापन के लिए बहुत बड़ा खतरा है। केन्द्र सरकार ने अकेले वित्तीय वर्ष 2009-10 में रासायनिक खादों पर 49,980 करोड रूपये खर्च किये जबकि पर्यावरण के अनुकूल खादों के लिए मात्र 5374.72 करोड रूपये दिये।

ऐसे में ग्रीनपीस ने “जीवित माटी” अभियान के तहत पांच राज्यों असम, उड़ीसा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और पंजाब में सरकारी नीतियों के असर का आंकलन करते हुए माटी की सेहत व देश की खाद्य सुरक्षा के बीच सीधे संबंध को उजागर किया है। बजट पूर्व विमर्श के लिए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा बुलाई गयी  बैठक में ग्रीनपीस ने एक बार फिर इस तरफ ध्‍यान खींचते हुए पर्यावरण अनुकूल खेती को बढावा देने पर बल दिया। साफ तौर से इससे रासायनिक उर्वरकों के इस्‍तेमाल को कम करने के लिए एक स्पष्ट समाधान निकलेगा।

ग़ौर तलब है कि नेशन एक्‍शन प्‍लान आन क्‍लाइमेट चेंज के तहत सरकार द्वारा बनाये गये आठ मिशनों में से नेशनल मिशन आन सस्‍टेनिबिल एग्रीकलचर की रूपरेखा बन चुकी है। पर क्रियान्‍वयन के अभाव में अभी इस काम के लिए बजट में वित्‍तीय आवंटन नहीं किया गया है। अब देखना यह है कि वित्‍त मंत्री का यह बयान कार्रवाई में कैसे परिलक्षित होता है। लेकिन इसने अगले स्तर पर हमें राजनीतिक पैरवी के लिए सही मंच मुहैया करा दिया है। नेशनल मिशन आन सस्‍टेनिबिल एग्रीकलचर के लिए भारी राशि आंवटित किये जाने की संभावना को देखते हुए "राष्‍ट्रीय पारिस्थितिकी उर्वरक मिशन" के समर्थन के लिए बड़े पैमाने पर ज़ोर लगाये जाने की जरूरत है।

ख़ास तौर से" राष्‍ट्रीय पारिस्थितिकी उर्वरक मिशन" को सबसे बड़ा खतरा जीएम फसलों के पदार्पण से है चूकिं नेशनल मिशन आन सस्‍टेनिबिल एग्रीकलचर के तहत जैवतकनीक पर महत्‍व दिये जाने की बात तय है। ऐसे में इस बात का विशेष ध्‍यान दिये जाना चाहिए कि यह मिशन भी कहीं एक बार फिर कारपरोट जगत के हाथों में खिलौना न बन जाए।