Children in bihar

भारत सरकार ने सन 2005 में राजीव गॉंधी ग्रामीण विद्युतीय योजना (RGGVY) शुरुआत की थी, जिसमें आजमगढ़ ज़िले के 22 विकासखंडों में गुणवत्तापूर्ण विद्युत् आपूर्ति देने का लक्ष्य रखा गया था. सरकारी  रिपोर्ट को देखा जाय तो इन ब्‍लॉकों में 93.3 प्रतिशत विद्युतीयकरण का कार्य पूर्ण हो चुका है।

जब इस योजना की घोषणा भारत सरकार ने की थी तो आज़मगढ़ के गाँवों में रहने वालें गरीब परिवारों में खुशियों की रोशनी जल उठी थी और गाँव के लोगों को अपना भविष्य उज्जवल दिखाई पड़ने लगा था । उन लोगों ने सोचा था कि अब हमारे बच्चे ज्यादा समय तक पढ़ सकेंगे और शाम ढले रोशनी के लिए लालटेन व डिबरी के लिए जो खर्च करना पडता हैं अब वह खर्च अब उनकी बचत होगी । ऐसा ही सपना उन दूसरे गाँव के लोगों का भी रहा होगा जहां आज़मगढ़ ज़िले की तरह 93.3 प्रतिशत विद्युतीयकरण का कार्य पूरा हो चुका होगा, वहाँ भी शायद यही उम्मीद रही होगी कि गाँव रोशनी से जगमगा रहे होंगे।

भारत सरकार भी अपने आंकड़े देखकर मान गई होगी कि उसने अपना वादा पूरा किया और आज़मगढ़ ज़िले में गुणवत्‍तापूर्ण बिजली की आपूर्ति का लक्ष्य पूरा हुआ। भारत सरकार ने इस  93.3 प्रतिशत सफलता की जांच कराने के लिए किसी कमेटी के गठन की बात नही सोची, अगर ऐसी कोई कमेटी बनती तो शायद यह आंकड़े सरकारी दावों की कलई खोल देते ।

इस मामले में सरकार भले ही सोचे या ना सोचे लेकिन देश में एक समुदाय ऐसा भी है जो वंचितो के अधिकारों के प्रति चिन्तित रहता है। ऐसे में पर्यावरण पर हो रहे दुष्परिणामों का अध्ययन कर रही संस्था ग्रीनपीस ने सरकार के 93.3 प्रतिशत आकडों की जमीनी हकीकत जानने के लिये पहले आज़मगढ़ ज़िले के दो खण्डों मेह नगर व तरवा के 4-4 गॉंवों का मुआयना किया तो RGGVY योजना के कार्यान्वयन और वितरण  में बहुत सारी खामिया नजर आयी।

इस पड़ताल में गाँव के लोगों ने अपना दर्द खुद अपनी ज़बानी बयान किया। RGGVY योजना को गरीब बस्तियों में प्रचारित ज़रूर किया गया था लेकिन असल में इससे मिलने वाली सुविधाओं से गरीब बस्तियां बिल्‍कुल अपरिचित है। गरीब परिवारों के घरों में केवल मीटर लटके मिले, उनका कनेक्‍शन किसी खंबे से करने की ज़रुरत तक नहीं समझी गयी। बहुत सारे परिवार ऐसे हैं जिनके घर में रोशनी तो पहुँची नही लेकिन बिजली का बिल जरूर पहुँच गया। बिजली का बिल भी इतनी अधिक राशि का कि गरीब लोग विद्युत् विभाग तक जाने में डरने लगे । ऐसे में  इन परिवारों का सुध लेने वाला तक कोई नही है।

मेहनगर के रघुनाथपुर में तो गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारो को RGGVY योजना क्या है इस बारे में पता ही नही है। पता भी कैसे हो, इन परिवारों के दरवाजे तक यह योजना पहुँची ही नही है। किसी गॉंव का ट्रांसफारमर एक साल से खराब है तो किसी गाँव की दलित बस्ती में ट्रांसफारमर लगा ही नही है, कोई बिजली कनेक्‍शन लेने के लिए परेशान है तो कोई बिजली का कनेक्‍शन कटवाने के लिए विभागों के दरवाजे खटखटा रहा है।

Solar panelsइन तथ्यों जानने समझने के लिए ग्रीनपीस ने गाँव-गाँव में भ्रमण कर योजना की सुविधाओं से वंचित लोगों की परेशानियों का ब्यौरा लिया। इसी क्रम में 18 साल के अजीत कुमार गुप्ता, ने बहुत ही गंभीरता से कहा, “हमारे माता-पिता दोनो अब नही है। हम अपने आठ साल के भाई के साथ किसी तरह दाना भूजकर  अपना व भाई का भरण-पोषण कर पा रहे हैं। RGGVY के अंतर्गत मेरे पिता जी के नाम पर कनेक्‍शन हुआ था लेकिन आज तक मेरे घर में कभी बिजली जली ही नही। मेरे पिता जी के नाम से कुल नौ हजार रूपये का बिल आया है। हम इतना पैसा कहाँ  से दे पायेंगे। मैं कनेक्‍शन कटवाने के लिए परेशान रहता हू।”

रधुनाथपुर के शिवराम की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, उसके मुताबिक़,“जब से हमको बिजली कनेक्‍शन मिला है, हमारे मीटर से तार का कनेक्‍शन नही हुआ है। मेरा मीटर बंद है।  गाँव  के कुल पांच -छ: लोग इसकी शिकायत भी किये और विभाग को चौदह सौ रूपये दिये फिर भी हमारा कनेक्‍शन ठीक नही हो पाया।”   

ग्रीनपीस के इस सर्वेक्षण और दस्तावेजीकरण से यह स्पष्ट समझ में आ रहा है कि आज़मगढ़ में 93.3 प्रतिशत विद्युतीयकरण का कार्य और सरकार के दावे कितने सच है। RGGVY से गरीबों के हित की बात कहीं दिखाई नहीं देती और गाँव के लोगों के साथ चर्चा करने से भी यह परिणाम निकला कि गाँव का कोई वर्ग वह चाहे गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी का हो या फिर ऊपर का, न तो इस योजना से खुश है और नही लाभान्वित ।

इसके साथ ही आज जिन स्त्रोतों से विद्युत् उत्पादन हो रहा है उन स्त्रोतों को भी गाँव के लोग पूरी तरह से नकारते हैं I इस बारे में उनका कहना हैं कि " हमें विद्युत् उन स्त्रोतों  से मिलनी चाहिए जिससे हमारे पर्यावरण की क्षति न हो। इन स्त्रोतों से बिजली सस्ती और आसानी से उपलब्ध हो सकती है। दरअसल जहां  शासन विफल होता हुआ नजर आ रहा है वहाँ पर समाज को आगे आना पडता है, ऐसी स्थिति की झलक रघुनाथपुर, मौलिया, वीरपुर व बासगाँव में मिलती हैं। इन गाँवों के लोग स्वयं विद्युत उत्पादन के ऐसे विकल्पों कि तलाश में हैं जिनसे पर्यावरण की रक्षा हो सके तथा गाँव  के लोगों को आसान व सस्ती सस्‍ती बिजली उपलब्ध हो सके।

दूसरी तरफ गाँव के लोगों को अच्छी तरह पता है कि आज जीतनी भी प्राकृतिक आपदाये झेलनी पद रहीं हैं उसकी ज़िम्मेदारी कही न कही हम पर ही है। हम केवल तात्कालिक फायदा और  सुख देखते है, उससे होने वाले दुष्परिणामों के बारे में नही सोचते । एक तरफ जहां विकास होता है तो वहीँ दूसरी तरफ विनाश भी है, ऐसे में हमें उन स्त्रोतों  को चुनना चाहिए जो हमारे लिए अनुपयोगी हो जैसे वैकल्पिक उर्जा।

हमारी सरकार द्वारा RGGVY के संदर्भ में कभी भी कोई जागरूकता कार्यक्रम नही किया गया और न ही कभी विद्युत विभाग से कोई इस योजना की सुध लेने आया I ऐसे में यह वाकई में सही है कि RGGVY का मिशन गरीबों की अँधेरी दुनिया में उजाला करने में कामयाब नहीं हो सका । सर्वेक्षण टीम ने गाँव के लोगों को RGGVY के बारे में जागरूक करते हुए इस योजना की सोशल आडिट की परिकल्‍पना को गाँव वालों के समक्ष रखा जिसकी प्रतिक्रिया में आठ गाँव के निवासियों ने माना कि ऐसे योजनाओं की जांच जरूर होनी चाहिए जिन योजनाओं में केवल आंकड़ों से खेला जाता है I ऐसा करने से दुनिया को पता चल सकेगा कि आंकड़ों के रथ पर हांकी जाने वाली सरकारी योजनाओं की जमीनी हकीकत क्या है।

 

Image 1: Children studying under the light of a kerosine lamp.© Harikrishna Katragadda / Greenpeace

Image 2: Solar panel installation. © Harikrishna Katragadda / Greenpeace