सिंगरौंली के जंगल बचाने के समर्थक हैं फिल्म स्टार अभय देओल

कोयला खनन के लिए बलि हो रहे समृद्ध महान जंगलों के ऊपर गैस के गुब्बारे में सवार होकर गुजरे

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Press release - January 11, 2012
नई दिल्ली / सिंगरौली, 11 जनवरी, 2012­- फिल्म अभिनेता अभय देओल भी आज ग्रीनपीस कार्यकर्ता बन गये। वह न केवल कोयला खनन के लिए जंगलों की बलि देने के खिलाफ चल रहे ग्रीनपीस के अभियान में शामिल हो गये बल्कि खतरे में पडे मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में मौजूद समृद्ध महान वनक्षेत्र के प्रति लोगों का ध्यान आकृष्ट करने के लिए गर्म गैस के गुब्बारे में सवार होकर उसके ऊपर उडे। भारी विरोध के बावजूद सरकार मध्य भारत के इन जंगलों को कोयला खनन के लिए खोलने की तैयारी कर रही है (1)।

गर्म गैस के गुब्बारे पर सवार अभय देओल ने कहा, "ये बहुमूल्य जंगल हम जैसे शहरी लोगों की ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिए काट डाले जायेंगे। यहां रहने वाले लोगों का जीवन और रोजी-रोटी दोनों संकट में फंस गये हैं। इन जंगलों में वन्यजीव भी बहुतायत में रहते हैं। मात्र कुछ लोगों के लालच को पूरा करने के लिए इन सभी की बलि दे दी जायेगी। ये बेहद दुःखद है और इसी कारण से मैं इन जंगलों की खातिर यहां आने के लिए मजबूर हो गया। मैं सब लोगों से अपील करता हूं कि कोयला खनन से इन जंगलों को बचाने के लिए वे आगे आयें।"

इन जंगलों और वन निर्भर समुदायों के भविष्य को दांव पर लगाकर कोयला खनन पर प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के समूह ने यहाँ खनन का परमिट देने की वकालत कर रहे हैं। यह ब्लॉक 'नो गो जोन' के रूप में सूचीबद्ध अक्षुण्‍ण वन होने के चलते पर्यावरण मंत्रालय और कोयला मंत्रालय के बीच विवाद की जड़ है जिसे प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी खनन की मंजूरी देने की पैरवी की है (2)।

इस मौके पर ग्रीनपीस अभियानकर्ता प्रिया पिल्लई ने कहा, "हम मानते हैं कि देश की उभरती अर्थ व्यवस्था के लिए ऊर्जा की ज्यादा जरूरत है लेकिन जंगलों, वन्यजीवों व वहां रहने वाले लोगों की रोजी रोटी को खतरे में डालने की कीमत पर हमें यह मंजूर नहीं है।" कोयला खनन कंपनियां के पास पहले से ही विशाल कोयला भंडार मौजूद हैं जिनकी वजह से तमाम वनक्षेत्र व स्थानीय लोगों की बस्तियां खतरे में पडी हुई हैं। अब ये और की मांग कर रहे हैं।

प्रिया ने आगे कहा कि इन जंगलों व इन पर आश्रित लोगों का भविष्य अब दांव पर है। केन्द्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता वाला मंत्री समूह जल्दी ही इन जंगलों को भी खनन के लिए मंजूरी देने के मूड में है। अगर ऐसा होता है तो यह खतरनाक परंपरा की शुरूआत होगी और इन जंगलों पर निर्भर सभी लोगों, नागरिक संगठनों, पर्यावरणविदों व मानव अधिकार कार्यकर्ताओं के लिए बहुत बडा सदमा होगा। यह तो वास्तव में निजी हितों को पूरा करने के लिए सरकार द्वारा जबरन कब्जा होगा।"

ग्रीनपीस उस समय तक नयी कोयला खनन संबंधी सभी योजनाओं पर रोक लगाने की मांग करती है जब तक सरकार पारदर्शी विचार-विमर्श प्रक्रिया अपनाकर संकट में फंसे जंगलों को बचाने के लिए सही नीति नहीं बना देती। आज ऊर्जा उद्योग को अपनी दोषपूर्ण खनन गतिविधियों में सुधार लाने की जरूरत है। साथ ही उसे कोयला खनन के लिए और अधिक वनक्षेत्र मांगने से पहले बिजली उत्पादन व वितरण संबंधी अपनी अक्षमताओं पर भी गौर करना चाहिए। सरकार को भी साफ सुथरे व अधिक टिकाऊ विकल्पों को ज्यादा प्राथमिकता देते हुए अपने रूख को भी स्पष्ट करना चाहिए।

संपादकों के लिए नोट

(1) सन 2007 के बाद 26,000 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि कोयला खनन के लिए दी जा चुकी है, देश में कोयला जंगलों के लिए सबसे बडा खतरा बनता जा रहा है। कोयला मंत्रालय उत्तर भारत में कोयला उत्पादन बढाने के लिए और अधिक वन भूमि की मांग कर रहा है। साथ ही यह आरोप भी लगा रहा है कि वन मंजूरी प्रक्रिया ऊर्जा उत्पादन की दिशा में दिक्कतें पैदा कर रही है। सरकार के अधीन चलने वाली कोल इंडिया लिमिटेड समेत कोल कंपनियों के पास कोयला खनन के लिए दो लाख हेक्टेयर से अधिक जमीन है जिसमें 55 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र भी शामिल है।

(2) यह वन ब्लाक 'नो गो' क्षेत्र की श्रेणी में आता है और वन एवं पर्यावरण मंत्रालय व कोयला मंत्रालय के बीच झगडे की जड बन गया है। प्रधानमंत्री कार्यालय भी कोयला मंत्रालय के पक्ष में खडा हो गया है। (नवीन रिपोर्ट)

फोटो लिंक http://photo.greenpeace.org/C.aspx?VP3=ViewBox&VBID=27MZV8LR6NQ8&VBIDL=&SMLS=1&RW=1280&RH=662

अधिक जानकारी के लिए कृपया संपर्क करें:

सीमा जावेद, सीनियर मीडिया आफिसर, ग्रीनपीस इंडिया, 09910059765,

ओरची बंद्योपाध्याय, सीनियर मीडिया आफिसर, ग्रीनपीस इंडिया, 09811265284,

प्रिया पिल्लई, पालिसी आफिसर, ग्रीनपीस इंडिया, 09999357766,