निर्देशिका अनुषा रिजवी  के साथ कुछ पल

जानी मानी फिल्‍म निर्देशिका अनुषा रिजवी ने पीपली लाइव बनाने के दौरान एक लम्‍बा समय खेत खलिहानों में बिताया। इस बीच उन्‍हें किसानों के सुख-दुख को बहुत करीब से देखने और उनकी परेशानियों को समझाने का मौका मिला। हाल ही में  दिल्‍ली के कांस्‍टीटयूशन क्‍लब में ग्रीनपीस की सोइल, सब्सिडीज एंड सर्वाइवल नामक शीर्षक से जीवंत माटी की रिपोर्ट जारी होने के मौक़े पर उनसे बातचीत का मौका मिला।

Anusha Rizviपीपली लाइव की निर्देशिका अनुषा रिज़वी ने  कहा की हरति खाद के इस्‍तेमाल को बढ़ावा देने से किसानो की मुशकिलें आसन हो सकती हैं।

किसानो की समस्‍याओं का जि़क्र करते हुए अनुषा रिजवी ने कहा कि बेचारे किसान के सामने कोई एक परेशानी तो है नहीं। दिनभर हाड़ तोड़ मेहनत करने के बावजूद वह सबसे असहाय है। अगर पानी नहीं बरसा तो फसल नहीं होगी और बीज- खाद के लिए लिया गया कर्ज अदा नहीं होता। अगले साल दोबारा कर्ज लेने और बारिश की दुआ करने के अलावा कड़ी मेहनत के बावजूद वह कुदरत के आगे लाचार है। ऐसे में हमारे किसान रसायनिक खादों को बढ़ावा दिये जाने के चलते, बाहरी संसाधनों पर निर्भर हो गये हैं। प्राकृतिक संसाधनों का क्षरण उन्‍हें और भी दयानीय स्थिति की तरफ ले जा रहा है। हरति खाद के इस्‍तेमाल को बढ़ावा देने से मुश्किल काफी कुछ हल होगी।

ग्रीनपीस की इस रिपोर्ट में पांच राज्यों – असम, उड़ीसा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और पंजाब में सरकारी नीतियों के असर का आंकलन करते हुए माटी की सेहत व देश की खाद्य सुरक्षा के बीच सीधे संबंध को उजागर किया है। रिपोर्ट के मुताबिक रसायनिक खादों के अंधधुन्‍ध इस्तेमाल से  माटी की सेहत चौपट हो गई है और पैदावार भी गिरी है। किसान सरकारी सब्स्डिी दिये जाने से जेब पर हलके पड़ने वाले रसायनिक उर्वरक इस्‍तेमाल करने को मजबूर हैं। हरित खादों से होने वाले फायदे को बखूबी समझने के बावजूद सरकारी प्रोत्‍साहन के अभाव में इनका उपयोग बहुत ही कम है। अगर यही तर्ज़ जारी रहा तो गिरती पैदावार देश की खाद्य सुरक्षा  के लिए खतरा बन जाएगी।