आजमगढ़ के शाहपुर गाँव में आज आरजीजीवीवाई को लेकर हुई जनसुनवाई में इस सामाजिक परिक्षण के निष्कर्षों को ग्रामीणों, स्थानीय प्रशासन के प्रतिनिधियों, स्थानीय नेताओं तथा सम्बन्धित विभागों के अधिकारियों के समक्ष रखा गया।
इस सर्वेक्षण में पाया गया है कि जहाँ इस योजना के तहत पात्रों को छह से आठ घंटे बिजली मिल रही है, वहीँ आज़मगढ़ की एक बड़ी जनसँख्या को इस योजना में शामिल ही नहीं किया गया है और उन्हें बिजली के कनेक्शन नहीं दिये गए हैं। उनमें से ज्यादातर लोगों से सम्बन्धित कागजात पर हस्ताक्षर करवा लिये गए हैं। कई लोगों के घरों में मीटर तो लगा दिये गए हैं लेकिन उन्हें अंतिम रूप से कनेक्शन नहीं दिया गया है।
ग्रीनपीस इंडिया के अभियानकर्ता और आजमगढ़ में सामाजिक परिक्षण के समन्वयक अक्षय गुप्ता ने कहा “आरजीजीवीवाई की वेबसाइट पर 93 प्रतिशत गांवों में विद्युतीकरण कार्य पूरा हो जाने का दावा किया गया है। यह दरअसल राष्ट्रीय न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत निर्धारित तथाकथित लक्ष्यों का मखौल है। टोडरपुर के फिनिहिनी जैसे गांवों में सिर्फ 10 प्रतिशत बीपीएल परिवारों को इस योजना के दायरे में लिया गया है। कुछ गांवों में योजना कि औपचारिकता निभाने के लिए सिर्फ 10 प्रतिशत आबादी की जरूरतों के अनुरूप ढांचा लगाया गया है। यह किस तरह का विद्युतीकरण है जिसमें सिर्फ कुछ लोगों को ही बिजली दी जा रही है।” उन्होंने कहा कि यह विद्युतीकरण कार्यक्रम तथ्यों को गलत ढंग से पेश कर रहा है।
यह योजना अवैध बिजली कनेक्शन के मामलों की भी शिकार है। यहां लोग अवैध रूप से बिजली लेने के लिये कटिया लगाते हैं। इससे बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता और ट्रांसफार्मरों पर बुरा असर पड़ता है।
इस योजना को लेकर लोगों में जागरूकता का स्तर भी बहुत निम्न है। सर्वेक्षण के दायरे में लिये गए आधे से भी कम लोगों को इस योजना के बारे में जानकारी थी। नतीजतन इस योजना पर भ्रष्टाचार का ग्रहण भी लग गया है। सर्वे के मुताबिक गरीबी रेखा से ऊपर जीवन गुजारने वाले लोगों ने बिजली कनेक्शन के लिये 5000 से 12000 रुपए तक चुकाए हैं।
सामजिक परिक्षण में ग्रीनपीस की साझीदार रही संस्था पीपुल्स विजिलंस कमेटी ऑन ह्यूमन राइट्स (पीवीसीएचआर) के डॉक्टर लेनिन ने इस अवसर पर कहा “लोग इस योजना से अनभिज्ञ हैं और उन्हें यह नहीं मालूम है कि बिजली का बिल जमा करने या ट्रांसफार्मर जलने की शिकायत करने के लिये किससे सम्पर्क किया जाए। लोगों को इस बात की भी जानकारी नहीं है कि आखिर उन्हें बिजली कनेक्शन क्यों नहीं मिला। सरकार ने यह योजना तो बना दी लेकिन लोगों की जरूरत के मुताबिक सहयोग नहीं दिया। उदाहरण के तौर पर सर्वे के दौरान बिजली के मीटरों की रीडिंग में अनेक खामियां पाई गई हैं। बीरपुर और कुरहापार के निवासी कुछ उत्तरदाताओं ने बताया कि बिजली का कनेक्शन नहीं होने के बावजूद उन्हें हर महीने बिल भेजा जा रहा है। उन्हें यह भी पता नहीं है कि वे इसकी शिकायत करने के लिये किसके पास जाएं। लोगों को संचयी बिल भेजे जा रहे हैं जिसे लेकर उनमें खासी नाराजगी है।”
बिजली की जरूरत ने लोगों को केरोसीन और डीजल जैसे प्रदूषणकारी तथा खर्चीले स्रोतों को अपनाने पर मजबूर किया है। सर्वे के मुताबिक लोग यह जानते हैं कि उन्हें अक्षय ऊर्जा के जरिये गुणवत्तापूर्ण और भरोसेमंद बिजली मिल सकती है और उन सभी ने डीजल और कोयले की अपेक्षा अक्षय ऊर्जा स्रोतों को बेहतर बताया।
ग्रीनपीस इंडिया के कार्यकारी निदेशक समित आईच ने इस मौके पर कहा, “हालांकि कागजों पर यह योजना बेहतर ढंग से चल रही है लेकिन असल में यह लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने में नाकाम साबित हुई है। सरकार के लिये यह योजना एक अवसर थी कि लोगों को समान रूप से एवं नियमित बिजली आपूर्ति दिलाने के लिये अक्षय स्रोतों से स्थानीयकृत बिजली उत्पादन का प्रयोग किया जा सके, लेकिन योजना के प्रति ढीले-ढाले रवैये का मतलब है कि ग्रामीण भारत को बिजली के लिए अभी और इंतजार करना होगा। विकेन्द्रित अक्षय ऊर्जा में भारत के गांवों को वाकई ऊर्जीकृत और विकसित करने की क्षमता है। केन्द्र सरकार और योजना आयोग को इस पर विचार करना चाहिये।”
अधिक जानकारी के लिये कृपया सम्पर्क करें:
* मुन्ना झा, मीडिया सलाहकार, ग्रीनपीस इंडिया, 09570099300,
* अक्षय गुप्ता, अभियानकर्ता, ग्रीनपीस इंडिया, 09176036002,
* डॉक्टर लेनिन रघुवंशी, पीपुल्स विजिलेंस कमेटी ऑन ह्यूमन राइट्स, 09935599333,