ग्रीनपीस अन्‍तरराष्‍ट्रीय के अधिशासी निदेशक कूमी नायडू को उनकी भारत यात्रा के दौरान करीब से जानने का मौका मिला।  इस मुलाकात में जो बात मेरे दिल की गहराइयों को छू गयी वह है उनका सीधा सरल व्‍यक्तित्‍व और अपनायत से भरा स्‍वभाव। वह यह महसूस ही नहीं होने देते कि वह एक बड़ी शखसियत हैं। बस पूरी तरह घुलमिल कर एकदम अपने जान पड़ते हैं।

गौरतलब है कि वह भारतीय मूल के दक्षिण अफ्रीकी निवासी हैं। जो कम उम्र में ही अपने देश की आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। अपनी स्‍वतंत्रता अंदोलन में हिस्‍सा लेने की क्रांतिकारी गतिविधियों के चलते उन्‍हें हाई स्‍कूल में स्‍कूल से निकाल दिया गया। वर्ष 2003 में उन्‍हें पूर्व संयुक्‍त राष्‍ट्र के सेक्रेट्री जनरल ने उन्‍हें एूएन सिविल सोसायटी रिलेशन्‍स के पेनेल में महत्‍वपूर्ण सदस्‍यों की सूची में शामिल किया। 15 नवम्‍बर 2009 को उन्‍होने ग्रीनपीस के अन्‍तरराष्‍ट्रीय अधिशासी निदेशक का पदभार संभाला।  कुल मिलाकर अगर देखें तो जंग ए आजदी से समाजिक न्‍याय की लड़ाई और अब पर्यावरण की जंग सफर वह तय कर चुके हैं।

Greenpeace International Executive Director at an interactive session in Indiaमेरे इस आंकलन पर वह हंस दिये और बोले कि दरअसल यह पर्यावरण की जंग और आजादी दोनो ही समाजिक न्‍याय से अलग मुददे नहीं हैं। बराबरी के लिए आज़ाद होना और कुदरत के संसाधनों का इस्‍तेमाल बिना उन्‍हें नुकसान पहुंचाये किया जाना जरूरी है। अपनी बात को समझाते हुए उन्‍होने कहा कि जलवायु परिवर्तन की अगर बात करें तो  यह पर्यावरण की रक्षा का ही नहीं लिंग भेद का भी मसला है। क्‍योंकि प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव का सीधा असर औरतों पर पड़ता है। पानी की कमी, खाद्यान्‍न अस़ुरक्षा, महामारी की चपेट यह सभी सबसे पहले  औरत को प्रभावित करती हैं।

तीन मूर्ति भवन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के न्‍योते पर भारतीय सामाजिक लोकतंत्र में बाजार, लोकतंत्र और सामाजिक न्याय का समावेश विषयक दसवीं इंदिरा गांधी कांफ्रेंस में हिस्‍सा लेने के दौरान वह हर किसी से मुझे अपने सहयोगी के रूप में मिलाना नहीं भूले। यहां तक कि कांग्रेस अध्‍यक्षा सोनिया गांधी से हाथ मिलाने और दक्षिण अफ्रीका के बारे में पूंछे जाने पर भी उन्‍होने पहले यही कहा- भारत की मेरी सहयोगी से मिलिये। बराबरी की बातें तो बहुत होती हैं पर इसका साक्षात पाठ मैने उनसे ही पढ़ा। मेरा मनोबल बढ़ाते हुए उन्‍होने कहा कि लिखना आना एक सौभाग्‍य है जो हर किसी को नहीं मिलता। जिन्‍हें पढना लिखना आता भी है उनके पास भी अकसर अपनी बात लिखने का वक्‍त नहीं होता।