देश में मिट्टी की सेहत पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत

ग्रीनपीस ने की बजट में राष्ट्रीय पर्यावरण उर्वरकता मिशन की मांग

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Press release - February 3, 2011
नई दिल्ली, 3 फरवरी, 2011: तेज़ी से बढ़ रहे खेतों की मिट्टी के क्षरण को रोकने के लिए देश में माटी की सेहत पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है । ग्रीनपीस ने भारत में पहली बारमाटी की से��त को सामाजिक तंत्र की कसौटी पर परख कर आज यहां अपनी रिपोर्ट जारी करते हुए यह बात कही। सोइल, सब्सिडीज एंड सर्वाइवल नामक शीर्षक से जीवंत माटी पर जारी इस रिपोर्ट के माध्यम से ग्रीनपीस ने सरकार से यह मांग भी की है कि वह आगामी केन्द्रीय बजट में राष्ट्रीय पर्यावरण उर्वरकता मिशन स्थापित कर इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए सार्थक पहल करें।

ग्रीनपीस की तरफ से जीवंत माटी पर जारी इस रिपोर्ट ने पांच राज्यों में चल रही मिट्टी की सेहत पर आधारित सरकारी नीतियों के असर का आंकलन करते हुए माटी की सेहत व देश की खाद्य सुरक्षा के बीच सीधे संबंध को उजागर किया है। यह रिपोर्ट इस तरफ भी ध्यान आकृष्ट करती है कि रसायनिक खादों के अंधधुन्‍ध  इस्तेमाल से न केवल मिट्टी के स्वास्थ्य पर बुरा असर पडा़ है बल्कि पैदावार भी गिरी है। अगर यही तर्ज़ लगातार जारी रहा तो गिरती पैदावार का देश की खाद्य सुरक्षा  के लिए खतरा बन जाएगी।

रिपोर्ट जारी करते हुए मशहूर  फिल्म निर्देशिका अनुषा रिजवी ने कहा कि  "हमारे किसानों पारंपरिक कृषि पद्धतियों के जरिये पर्यावरण अनुकूल  खेती के तौर तरीके अपनाकर मिट्टी  की सेहत को समृद्ध बनाते आये हैं। वह गोबर, पत्‍ते आदि खेत से ही उत्पादित सामग्री का उपयोग उर्वरक के रूप में प्राचीन काल से करते रहे हैं। रसायनिक खादों  को बढ़ावा दिये जाने के चलते वह अब खेती के लिए बाहरी संसाधनों पर निर्भर हो गये हैं। ऐसे में प्राकृतिक संसाधनों के क्षरण  उन्‍हें दयानीय सिथति की आरे ले जा रहा है।”

ग्रीनपीस इंडिया के कैम्पेनर एसआर गोपीकृष्ण ने इस मौके पर बताया कि फसलों की पैदावार बढा़ने के लिए जिस तरह चारों तरफ रासायनिक खादों का अंधाधुंध प्रयोग हो रहा है, उससे हमारी माटी को बहुत नुकसान हुआ है। मुझे अभी भी उम्मीद की किरण दिख रही है। उन्होंने कहा, “यह सही है कि मिट्टी की सेहत बेहद खराब हो चुकी है पर हम अभी उस स्थिति में नहीं पहुंचे हैं जहां सारी उम्मीदें खत्म हो जाती हैं। किसान पर्यावरण के अनुकूल खादों का इस्तेमाल बढाकर अपनी मिट्टी की खोई हुई ताकत फिर से वापस ला सकते हैं। जो उनको न केवल अधिक पैदावार देगी बल्कि उनकी मिट्टी की समस्याएं भी दूर करेगी।”

गोपीकृष्ण ने कहा कि बरसों से रासायनिक खादों के लगातार इस्तेमाल के चलते नैसर्गिक मिट्टी का वह परिस्थितिकी तंत्र नष्ट हो गया है जो धरती पर जीवन को सहयोग प्रदान करने वाले प्राथमिक प्राकृतिक संसाधनों में से एक हैं। मिट्टी एक संपूर्ण परिस्थितिकी तंत्र है जिसमें तमाम ऐसे जीवित अवयव मौजूद होते हैं जो माटी को जीवंतता प्रदान करते हैं। मिट्टी का एक जीवित परिस्थितिकी तंत्र पौधों की जडों को पोषक तत्वों की आपूर्ति करके फलने-फूलने के लिए स्वस्थ माहौल भी मुहैया कराता है।

ओपी रूपेला और एसआर गोपीकृष्ण द्वारा तैयार की गई यह रिपोर्ट बताती है कि पर्यावरण के अनुकूल खादें प्राकृतिक, पर्यावरण मित्र और स्थानीय स्तर पर आसानी से उपलब्ध होती हैं। ज्यादातर मामलों में किसान खुद अपने खेतों में उनको विकसित या पैदा कर सकते हैं। इससे ग्रामीण उत्पादकता भी अपने आप बेहतर हो सकती है और ग्रामीण भारत में रोजगार के तमाम अवसर भी पैदा हो सकते हैं।

अपने जीवंत माटी अभियान के तहत, ग्रीनपीस ने जुलाई से नवंबर, 2010 के मध्य असम, उड़ीसा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और पंजाब के चिन्हित किये गये जिलों में केन्द्र सरकार की मिट्टी स्वास्थ्य प्रबंधन संबंधी नीतियों और योजनाओं का सामाजिक परीक्षण किया। ग्रीनपीस ने एक हजार किसानों के बीच एक सर्वेक्षण भी कराया जिसमें हर राज्य के चुने गये एक जिले के दो सौ किसान शामिल किये गये ताकि मिट्टी के स्वास्थ्य पर उनके विचार और मूल्यांकन को सामने लाया जा सके और इन स्थानों पर मिट्टी स्वास्थ्य प्रबंधन संबंधी नीतियों के प्रभाव को भी समझा जा सके। सर्वेक्षण के बाद निकले निष्कर्षों को प्रत्येक स्थान पर स्थानीय जनसमूहों के सहयोग से आयोजित जन सुनवाई कार्यक्रम में भी प्रस्तुत किया गया।

यह रिपोर्ट इसलिए भी अपने आप में विशेष हैं क्योंकि यह रिपोर्ट वैज्ञानिक तथ्यों और किसानों के दृष्टिकोण को एक धरातल पर लाकर संयुक्त रूप से प्रस्तुत करती है। यह किसानों पर खासतौर से ध्यान केन्द्रित करती है और अपनी मिट्टी के बारे में उनके जमीनी अनुभवों व मूल्यांकन को महत्व देती है। ग्रीनपीस की यह रिपोर्ट स्वस्थ मिट्टी को, पर्यावरणीय उर्वरकता की आवश्यकता, सिंथेटिक फर्टिलाइजर्स के अंधाधुंध इस्तेमाल और उसके प्रभावों को तो परिभाषित करती ही है, साथ में मिट्टी के स्वास्थ्य प्रबंधन की कसौटी पर केन्द्र सरकार की नीतियों और योजनाओं को भी कसती है।

इस रिपोर्ट का सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि किसान कैसे सरकार के समर्थन से अपनी क्षरित और खस्ताहाल भूमि को फिर से हरा-भरा कर सकते हैं। ग्रीनपीस अब किसानों को यह बताने के लिए एक राष्ट्रीय अभियान शुरू करने की योजना बना रहा है कि वे किस तरह अपनी भूमि के स्वास्थ्य को सुधारने के लिए अपने खेत के पिछवाडे में पर्यावरण के अनुकूल खाद पैदा कर सकते हैं और अपनी घटती कृषि उपज को बढा सकते हैं।

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प्रेस किट के साथ संलग्न है:

1-आफ सोइल्स, सब्सिडीज एंड सर्वाइवल- ए लिविंग सोइल्स रिपोर्ट  

2- मीडिया सारांश

3-न्यूट्रिएंट बेसड सब्सिडी (एनबीएस) पर एक नीतिगत सारांश

 

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:

एसआर गोपीकृष्ण  

सस्टेनेबिल एग्रीकल्चर कैम्पेनर,

ग्रीनपीस इंडिया, मोबाइल: +91 9900897341,

ईमेल:

 

डा.सीमा जावेद वरिष्‍ठ मिडिया अफसर

ग्रीनपीस इंडिया, मोबाइल: +91 9910059765

ईमेल:

 

राहुल कुमार

मिडिया कन्‍सलटेंट

ग्रीनपीस इंडिया, मोबाइल: +91 9811329116

ईमेल: