अक्षय ऊर्जा के स्पष्ट फायदे के बावजूद दूरसंचार सेक्टर ने इसके इस्तेमाल की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। अगले दस सालों में अक्षय ऊर्जा के उपयोग से मोबाइल टावर के कुल ऊर्जा खर्च में तीन सौ फीसदी की कमी हो सकती है।
ग्रीनपीस भारत के ऊर्जा कैम्पेनर एवं इस रिपोर्ट के लेखक मृनमोय चटराज ने कहा कि दूरसंचार सेक्टर के बढ़ते ऊर्जा उपयोग और उससे जुड़े कार्बन उत्सर्जन को देखते हुए यह जरूरी है कि यह सेक्टर अक्षय ऊर्जा को न सिर्फ व्यापक स्तर पर अपनाये बल्कि ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए कानूनी प्रारूप बनाये जाने का सतत प्रयास करे। इस सेक्टर को कम कार्बन उत्सर्जन वाली आर्थिक व्यवस्था के लिए सहयोगी नीतियों को बनाने के लिए अपने बढ़ते रसूख का इस्तेमाल करना चाहिए।
इस रिपोर्ट का निष्कर्ष निम्नलिखित हैं-
वर्ष 2008 में टेलीकाम सेक्टर द्वारा डीजल के अंधाधुंध इस्तेमाल की वजह से 56 लाख टन कार्बन उाई आक्साइड उत्सर्जित हुई, जो इस सेक्टर की बढ़ती वृद्धि दर के चलते आसमान छूने लगा है।
अगले दस सालों में डीजल की जगह सौर ऊर्जा आधारित मोबाइल टावर के उपयोग से टेलीकाम आपरेटर के कुल खर्चो में तीन सौ फीसदी तक की कमी हो सकती है
कार्बन उत्सर्जन और उसे कम करने के इरादे से जुड़ी सूचनाओं को जगजाहिर करने से इस सेक्टर की नामी कंपनियां अपना दामन बचा रही हैं।
पूरे देश के मोबाइल टावरों को सौर ऊर्जा से संचालित करने के लिए एक लाख इक्यावन हजार करोड़ रूपये की जरूरत है, जो उतनी ही रकम है जितनी यह सेक्टर अगले दस सालों में डीजल उपयोग पर खर्च करेगा।
ग्रीनपीस भारत के वरिष्ठ ऊर्जा कैम्पेनर अभिषेक प्रताप का कहना है कि अंत में कुल मिलाकर अगर देखा जाए तो दूरसंचार उद्योग के लिए अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल उनके अपने मुनाफे के लिए है जो दूरगामी तौर पर उनके खर्चो में व्यापक कमी लायेगा। पर सवाल यह है कि क्या वह दीवार पर लिखी इस इबारत को पढ़ रहे हैं।
अंतत: देश की टेलीकाम कंपनियों से ग्रीनपीस की यह मांग है कि वह अपने वार्षिक कार्बन उत्सर्जन को जगजाहिर करें और वर्ष 2015 तक मोबाइल टावरों के संचालन में इस्तेमाल होने वाली बिजली के उपयोग में से पचास प्रतिशत को अक्षय ऊर्जा द्वारा आपूर्ति करें।
अधिक जानकारी के लिए यह पूरी रिपोर्ट एवं इससे संबधित अन्य सूचनाएं http://www.greenpeace.org/india/Global/india/docs/cool-it/reports/telecom-report-may-2011-web-optimized.pdf पर उपलब्ध हैं।
नोटस
1. ईंधन की लागत में कृत्रिम रूप से लगभग 21 % तक की कमी लाने के लिए प्रति लीटर डीज़ल पर 7 से 11 रुपये तक का अनुदान,आधारभूत उत्पादों की ढुलाई,सार्वजानिक परिवहन और कृषि के लिए विशेषकर कम दामों पर इसकी बिक्री I औद्योगिक क्षेत्र के लिए डीज़ल के दामों के निर्धारण के लिए दोहरी या अलग नीति के अभाव के चलते दूरसंचार क्षेत्र ने डीज़ल का दुरुपयोग किया और इस क्षेत्र में साल 2010 -11 के अंत तक डीज़ल की खपत 3 बिलियन तक पहुँच गयी.
2. सन 2009 में हुई आई डी ऍफ़ सी औद्योगिक परिचर्चा के दौरान के पी एम् जी ने अपने विश्लेषण में सन 2012 तक 797,000 बेस ट्रांसीवर स्टेशन स्थापित करने का उल्लेख किया है. चूंकि प्रत्येक ट्रांसीवर की सालाना उर्जा खपत 32,734 यूनिट होती है ऐसे में मोबाइल टावरों की कुल खपत 26 बिलियन यूनिट आती है
3. नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार दूरसंचार क्षेत्र मोबाईल टावरों के संचालन के लिए सालाना 2 बिलयन लीटर डीज़ल की खपत करता है और इन मोबाईल टावरों की संख्या सन 2011 में 30 % की दर से बढ़ कर 3 बिलियन तक पहुँच गयी है.
4. टेलीकोम नेटवर्क टावर्स से निकलने वाला कुल प्रदूषित उत्सर्जन (डीज़ल खपत और ग्रिड संयोजन में इस्तेमाल बिजली मिला कर ) लगभग 13 .6 मीट्रिक टन है
5. हरित दूरसंचार विषय पर आये टी आर ए आई के हालिया शोध पत्र में स्पष्ट रूप से कार्बन उत्सर्जन की घोषणा और मोबाईल टावर्स, विशेषकर दूरसंचार की दृष्टि से तेज़ी से विस्तारित ग्रामीण इलाकों में स्तिथ मोबाईल टावर्स के लिए स्वच्छ उर्जा खरीद का लक्ष्य निर्धारित करने के लिए सक्रिय कदम उठाने की आवशयकता पर जोर दिया गया है. http://www.trai.gov.in/Green_Telecom-12.04.2011.pdf
6. दूरसंचार क्षेत्र डीज़ल ईंधन पर सालाना 126 बिलयन रुपये खर्च करता है. यदि इस क्षेत्र में डीज़ल पर 21 % का अनुदान समाप्त कर दिया जाए तो दूरसंचार क्षेत्र में डीज़ल ईंधन की खपत 150 बिलियन सालाना तक पहुँच जाएगी. दूसरी तरफ सम्पूर्ण दूरसंचार नेटवर्क के टावरों को सौर उर्जा पूर्ण बनाने और उनके सीमित संचालन का खर्च अगले दस साल की कुल डीज़ल खपत के खर्च के बराबर है
संपर्क:
अभिषेक प्रताप, वरिष्ठ ऊर्जा कैम्पेनर, ग्रीनपीस भारत +91 98456 10749,
डा. सीमा जावेद वरिष्ठ मीडिया अधिकारी, ग्रीनपीस भारत +91 9910059765,