ग्रीनपीस के आशीष फर्नांडीस ने मंत्रिसमूह द्वारा किये गए विचार-विमर्श में अधिक पारदर्शिता तथा सलाह-मशविरा की जरूरत बताते हुए कहा “चंद मंत्रियों द्वारा जनता से विचार-विमर्श किये बगैर बंद दरवाजे के पीछे भारत के छह लाख हेक्टेयर से अधिक जंगलों का फैसला किया जाना लोकतंत्र का मखौल उड़ाने जैसा है। कोयला खनन के व्यापक पर्यावरणीय तथा सामाजिक प्रभाव पड़ते हैं और कोयले के लिये वन क्षेत्रों की बलि चढ़ाने सम्बन्धी कोई फैसला करने से पहले इन समस्याओं का समाधान ढूंढना जरूरी है।”
माइन्स मिनरल्स एण्ड पीपुल के आर श्रीधर ने देश में हो रहे कोयला खनन पर ज्यादा तल्ख रुख अपनाते हुए कहा “देश में कोयला खनन का एक भी ऐसा उदाहरण नहीं है जिसमें लोगों की जिंदगी और पर्यावरण पर बुरा असर न पड़ा हो। उड़ीसा का अंगुल और झारखंड का बोकारो तो दो उदाहरण मात्र हैं। यह सरकार अपने पाखंड को एक नए स्तर पर ले जा रही है। वह वनवासियों के अधिकारों का ख्याल करने का दावा करती है मगर फिर भी उसे उन्हीं जंगलों को खत्म करने में जरा भी हिचक नहीं होती जिन पर वे निर्भर करते हैं।”
वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक बेलिंडा राइट ने वन्यजीवों खासकर हाथी और बाघ जैसे विस्तृत क्षेत्र वाली प्रजातियों पर पड़ने वाले खनन के असर पर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा “मैंने तादोबा तथा पन्ना बाघ अभयारण्यों में वन्यजीव गलियारों पर पड़ने वाले खनन के असर को प्रत्यक्ष रूप से देखा है। मंत्रिसमूह ने जिन क्षेत्रों पर गौर किया है उनमें से कई इलाके वन्यजीवों के महत्वपूर्ण वासस्थल हैं लेकिन जैव विविधता के पहलुओं की उपेक्षा की गई है। अकेले उड़ीसा में हम 400 से ज्यादा हाथियों के बारे में बात कर रहे हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र में हम उन जंगलों की बात कर रहे हैं जहाँ दर्जनों या उससे भी अधिक बाघ हैं।”
वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने इस मंत्रिसमूह के अध्यक्ष होने के नाते इस मुद्दे पर गैर सरकारी संगठनों से मुलाकात की पेशकश की है लेकिन उन्होंने इसके लिये कोई तारीख और समय तय नहीं किया है। जबकि मंत्रिसमूह द्वारा विचार-विमर्श का क्रम जारी है। यह स्पष्ट है कि जहां तक नो गो जोन का विस्तार करने का सवाल है तो पर्दे के पीछे विभिन्न पक्षों से तगड़ा मोलभाव किया जा रहा है। (कुल 652572 हेक्टर में से)320684 हेक्टर के शुरुआती स्तर के बाद एमओईएफ अब सिर्फ 268750 हेक्टर को नो गो जोन बनाने पर विचार करने की बात कह रहा है। (2) ऐसा लगता है कि वर्गीकरण के लिये सकल वनाच्छादन के पैमाने में भी बदलाव किया गया है। इसे 25 प्रतिशत से बढ़ाकर 30 फीसद किया गया है। हालांकि प्रधानमंत्री कार्यालय इसे बढ़ाकर 50 प्रतिशत तक करना चाहता था।
लॉयर्स इनीशियेटिव फार फारेस्ट्स एण्ड एनवायरमेंट के पर्यावरण सम्बन्धी वकील रित्विक दत्ता ने कहा “मंत्रिसमूह की साजिश पर गोपनीयता का जाल बुना गया है। उसका आदेश अत्यंत संदेहास्पद है और वह भारत के पर्यावरणीय रक्षा कवच को कमजोर करने की दिशा में उठाया गया पहला कदम प्रतीत होता है।” “मौजूदा प्रावधानों, नियमों, नियमनों, दिशानिर्देशों या कार्यकारी निर्देशों में बदलाव के मंत्रिसमूह के सुझावों ” (3) का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा “प्रभावित समुदायों द्वारा हाल में किये गए विरोध प्रदर्शनों से यह जाहिर होता है कि भारत में पर्यावरण सम्बन्धी कानूनों को मजबूत करके उन पर समुचित अमल करने की जरूरत है, न कि उन्हें कमजोर करने की।”
ग्रीनपीस तथा अन्य गैर सरकारी संगठन मंत्रिसमूह का आह्वान करते हैं कि वह एक ऐसी जन परामर्श प्रक्रिया की घोषणा करे जिसके जरिये इस मुद्दे पर कोई फैसला किये जाने से पहले प्रभावित समुदाय, सामाजिक, वन्यजीव तथा जैव विविधता तथा वैकल्पिक उर्जा विशेषज्ञ एवं जलविज्ञान विशेषज्ञ अपनी राय रख सकें।
अधिक जानकारी के लिये सम्पर्क करें :
1- प्रीति हरमन, कैम्पेनर, ग्रीनपीस इंडिया, +91 9901488482
2- शचि चतुर्वेदी, मीडिया अधिकारी, ग्रीनपीस इंडिया, +91 9818750007
3- आशीष फर्नांडीस, कैम्पेनर, ग्रीनपीस इंडिया, +91 9980199380
सम्पादक के लिये नोट
(1) महाराष्ट्र और उड़ीसा के चुनिंदा कोयला खनन जिलों में बाघ, तेंदुआ और हाथियों की अनुमानित संख्या
महाराष्ट्र का वर्धा कोयलाक्षेत्र :
जिले
|
बाघों की संख्या
|
तेंदुओं की संख्या
|
हाथियों की संख्या
|
|
गैर संरक्षित क्षेत्र
|
संरक्षित क्षेत्र
|
गैर संरक्षित क्षेत्र
|
संरक्षित क्षेत्र
|
शून्य
|
वर्धा
|
7
|
6
|
16
|
6
|
शून्य
|
चंद्रपुर
|
36
|
32
|
50
|
24
|
शून्य
|
यवतमाल
|
शून्य
|
1
|
7
|
1
|
शून्य
|
कुल
|
43
|
39
|
73
|
31
|
शून्य
|
महाराष्ट्र सरकार के वर्ष 2005 के गणना आंकड़े
तालचेर और इब घाटी कोयलाक्षेत्र :
जिले
|
बाघों की संख्या *
|
तेंदुओं की संख्या *
|
हाथियों की संख्या **
|
सुंदरगढ़
|
शून्य
|
18
|
81
|
सम्बलपुर
|
7
|
43
|
249
|
धेनकनाल
|
शून्य
|
2
|
157
|
कुल
|
7
|
63
|
487
|
* उड़ीसा सरकार के वर्ष 2004 के गणना आंकडे़। उड़ीसा सरकार द्वारा कराई गई आखिरी गणना। भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा वर्ष 2008 में किये गए अनुमान से राज्य सरकार ने असहमति व्यक्त की थी।
** उड़ीसा सरकार द्वारा वर्ष 2010 में की गई गणना के आंकड़े
2- छत्तीसगढ़ के हसदेव अरंड कोयलाक्षेत्र का भाग्य अधर में लटका है। सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत जानकारी मांगने पर प्राप्त शुरुआती दस्तावेजों में उस क्षेत्र को पूरी तरह से नो गो क्षेत्र होने की बात सामने आई है। ऐसा लगता है कि एमओईएफ द्वारा मंत्रिपरिषद को दी गई प्रतिक्रिया के बाद इसे वर्गीकरण प्रक्रिया से पूरी तरह अलग कर दिया गया। बाद में इस कोयला ब्लॉक में परियोजनाओं को मंजूरी देने के लिये पीएमओ द्वारा दबाव डालने की रिपोर्टें सामने आईं। अब पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश द्वारा संसद में गत 14 मार्च को दिये गए ताजा बयान पर नजर डालें तो लगता है कि इसे वर्गीकरण की प्रक्रिया में एक बार फिर शामिल कर दिया गया है।
3- मंत्रिसमूह के आदेश की प्रति निम्नलिखित वेब लिंक पर भी देखी जा सकती है-
http://greenpeace.org/india/Global/india/docs/Mandate%20coal%20GoM.pdf